Saturday, 24 March 2012

REIN THE MIND

Man's mind is driven according to his desires and thus he starts to create likely environments. Definitely giving up the evil ideas are strenuous, but not impossible.

Sacred thoughts makes desired impressions on one's mind, the mind is cleansed up and thoughts are driven again to go upwardly. Mind is  the man's servant who fulfills his desires. As man makes a desire, mind is driven accordingly and thus starts to create environments just like his thoughts.Mind is yours most trustworthy and advantageous friend. Definitely giving up the evil ideas are very strenuous, but not impossible. Good offices are required at the same proportion of the distortions. If one desires to get rid of long nurtured distortions in a little span of time, he makes mistake. Hard and determined practices are needed for the complete ablution of mind from old and deep deformities. Keep practicing regularly and you will see that within a year your mind is becoming auspicious - in reality it is the true essence of life. For your mind's complete ablution and making your thoughts auspicious, not only work with your mental power but also include your karma - shakti i.e. holy deeds towards yourself, society and humanity. There is a saying - 
                                  " One which drenches the ships is called storm,
                                     And one who challenges the storms is called man. "


मन पर लगाम लगायें

मनुष्य जिस प्रकार कि  इच्छा करता है मन तुरंत उसके अनुकूल संचालित हो उठता है, और उसी प्रकार कि परिस्थितियां सृजन करने लगता है. बुरे विचारों का त्याग श्रमसाध्य अवश्य है, किन्तु असाध्य कदापि नहीं.


पवित्र विचारों से मन पर वांछित संस्कार पड़ते हैं, उसका परिमार्जन होता है और उसमे उर्ध्वगामी होने कि रूचि पुनः उत्पन्न होती है. मन ही मनुष्य के मनोरथो को पूरा करने वाला सेवक होता है. मनुष्य जिस प्रकार कि इच्छा करता है मन तुरंत उसके अनुकूल संचालित हो उठता है और उसी प्रकार कि परिस्थितियां सृजन करने लगता है. मन आपका सबसे विश्वस्त मित्र और हितकारी बंधू होता है. यह सही है कि बुरे विचारों का त्याग श्रमसाध्य अवश्य है, किन्तु असाध्य कदापि नहीं. विकृतियों के अनुपात में ही सत्प्रयासों के आवश्यकता है. बीसों साल कि पाली हुई विकृतियों को कोई एक दो महीनो में ही दूर कर लेना चाहता है तो वह गलती करता है.विकृतियाँ जितनी पूरानी होंगी उतने ही गहरे एवं दृढ अभ्यास कि आवश्यकता होगी. नियमित प्रयत्न करते रहिये, वर्ष बीतते बीतते  ही आप अपने मन को अनुकूल देखेंगे  - वास्तव में यही जीवन का सार है. मन को परिमार्जित करने में, उसे अपने अनुकूल बनाने में केवल विचार शक्ति ही नहीं अपनी कर्म शक्ति को भी लगाईये. एक कहावत है - 
           " जहाजों को जो डुबो दे, उसे तूफान कहते हैं, 
              जो तुफानो से टक्कर ले उसे इंसान कहते हैं."
                                                                                - स्वामी रामेश्वरानंद जी उर्फ घनश्याम जी 

Thursday, 8 March 2012

मानव को ज्ञान होना चाहिए


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Wednesday, 7 March 2012

साक्षात् दर्शन





 
साक्षात् दर्शन 
15-05-1995 से 26-05-1995
तक तपस्या के दौरान 
बाबा धनसर स्थान, सराय  रोड, कतरा, जम्मू 
महाराज जी की एक दुर्लभ तस्वीर -   
बहूत अनुरोध करने पर गुरूजी ये तस्वीर डालने के लिए तैयार हुए, उन्होंने बताया की, इस वक़्त उनको दर्शन हुआ था, किसका हुआ ये उन्होंने प्रकाशित नहीं किया, वहीँ पे कुछ स्कूल के बच्चों के साथ एक आदमी था जिन्होंने ये तस्वीर खिंची थी, बाद में गुरूजी ने ये तस्वीर उनसे मांग कर लिया था, प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार उन्होंने जोर का उजाला होते देखा तो दौड़े चले आये, देखा तो महाराज जी अवाक् भाव में थे, ऐसी भाव भंगिमा उनके और किसी तस्वीर में देखने नहीं मिली.
बाकी तस्वीरों के लिए इस लिंक पर क्लिक 
 करें-